दोस्तों नमस्कार
आज बहुत दिनों बाद कुछ अलग लिखने का मन कर रहा है मगर जो लिखना चाहते हैं उसके लिए उचित समय नहीं है मगर फिर भी क्या करें लिखना हमारी आदत है। बीते कुछ दिनों से पूरे देश में एक ही समस्या को लेकर हाहाकार मचा हुआ है कहीं पुलिस पब्लिक को पीट रही है तो कहीं पब्लिक की पुलिस पर भारी पड़ रही है और यह सब देश में नए यातायात अधिनियम के लागू होने के बाद शुरू हुआ है।
यातायात अधिनियम में बदलाव होने के बाद मानो पूरे देश में आज सी गई हो। काफी वाहन चालक सरकार के अधिनियम तारीफ करते नजर आते हैं वही कुछ खामियां गिनाते हैं। देश मैं यातायात नियमों की अनदेखी करना वाहन चालकों की आदत में शामिल हैं मगर जब से नया अधिनियम लागू किया गया है वाहन चालकों ने नियमों को छोड़ना काफी हद तक कम कर दिया। निश्चित ही कुछ ही दिनों में काशी परिवर्तन आने से यह साफ हो गया है कि शक्ति से नियमों का पालन कराया जा सकता है।
केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए यातायात नियम बहुत ही सख्त है मगर ऐसा भी नहीं कि पूरा न किया जा सके क्योंकि यातायात नियमों का पालन करना बहुत आसान है। हम सभी कई बार जानकर यातायात नियमों का उल्लंघन करते हैं जिसके चलते कई बार दुर्घटना ग्रस्त भी होते हैं और कई बार किसी अन्य की वजह से दुर्घटनाग्रस्त होते हैं क्योंकि उसके द्वारा यातायात नियमों का उल्लंघन किया गया और झेलना किसी और को पड़ता है। इसके बावजूद यातायात नियमों की अनदेखी का जुर्माना इतना भारी नहीं होना चाहिए क्योंकि पुलिस को तो आम जनता से भाई का केवल मौका मिलना चाहिए। फिर पुलिस आम जनता की जेब पर डाका डालने के साथ-साथ उसकी चमड़ी जी उतार लेती है। बीते कुछ दिनों में पुलिस और जनता के बीच ऐसे ही मामले सामने आए हैं जिनमें पुलिस तानाशाही साफ नजर आई है। सरकार को यह कतई नहीं सोचना चाहिए कि पुलिस अपना काम ईमानदारी से करेगी और सरकार का खजाना भर दिया जाए अगर ऐसा सोचना सरकार का है तो इसके परिणाम सरकार की सोच के विपरीत आने हैं यह तो तय है। हां यह जरूर है कि भ्रष्टाचार का ग्राफ बहुत ही तेजी से बढ़ने वाला है क्योंकि सबसे ज्यादा लूट सड़क पर खुलेआम होती है और जिसका श्रेय केवल पुलिस और परिवहन विभाग को जाता है और अभी तक कोई भी सरकार इस पर अंकुश नहीं लगा पाई है। नमो सरकार भले ही स्वयं की पीठ थपथपा ले की उनके शासन में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाएं मगर ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यातायात नियम लागू होने के बाद तो भ्रष्टाचार की कोई सीमा होने ही वाली नहीं है क्योंकि पुलिस द्वारा की जाने वाले लूट सारे रिकॉर्ड उड़ने वाली है। यातायात नियमों की आड़ में पुलिस ने किसी को भी नहीं छोड़ने वाली क्योंकि यह एक आसान कमाई का जरिया उन्हें सरकार की तरफ से तोहफे में मिला है।
नोएडा में कुछ समय से ई चालान की प्रक्रिया लागू की गई जिसके परिणाम इतने भयंकर सामने आए हैं कि जिसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। नोएडा पुलिस कुछ ही समय में चालानओं की संख्या मैं इतना इजाफा किया कि जब हम स्वयं अपना चालान भुगतने कार्यालय पहुंचे तो वहां पर लंबी लाइन और कंप्यूटर सिस्टम बंद। अब बताएं ई चालान कैसे भुगतान किया जाए मगर वहां मौजूद पुलिसकर्मी चालान भुगतने वालों से बदतमीजी करने के अलावा समस्या का हल बताने नहीं कोई रुचि नहीं थी आखिरकार हम भी वहां से खाली हाथ लौट आए। वहां पर पहुंची काफी वाहन स्वामियों से वार्ता हुई तो उन्होंने बताया कि पुलिस काफी वाहनों के चालान जबरदस्ती कर रही है।
मुझे याद पड़ रहा है कि 1975 में इसी तरह इंदिरा गांधी सरकार ने जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिए नसबंदी योजना चलाई थी जिसमें पुलिस ने अपना कोटा पूरा करने के लिए जबरन लोगों को नसबंदी उस आग में झोंक दिया था। यह कोई एक शहर की बात नहीं पूरे देश की पुलिस ने यही रास्ता अपनाया था। इसके बाद इंदिरा गांधी सरकार में देश में इमरजेंसी लागू की। जिसमें पुलिस को किसी पर भी कार्यवाही करने की खुली छूट थी। जिसके परिणाम स्वरूप पुलिस ने किसके साथ क्या किया आज हमें बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जो आज सरकार में बैठे हैं वह उस समय जेलों के अंदर थे।
इमरजेंसी और नसबंदी के परिणाम क्या आए या नहीं यह तो सभी को मालूम है मगर इसके बाद चुनाव में इंदिरा गांधी सरकार का बुरा हाल हुआ और देश की जनता ने दोनों ही योजनाओं को पूरी तरह से नकार दिया था। इसके बाद चुनाव देश की जनता ने कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह नकार दिया और चुनाव परिणाम कुछ ऐसे सामने आए जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं थी। आज देश में यातायात नियमों को जबरन लागू किए जाने के बाद हालात कुछ ऐसे ही है जैसे कि नसबंदी योजना के दौरान थे। उस समय किसी को भी पकड़ कर जबरन नसबंदी करा दी जाती थी और आज सड़क पर चलते हुए किसी भी वाहन का चालान काटना बहुत ही आसान है। सरकार के यातायात अधिनियम का असर देश के प्रत्येक व्यक्ति पर पढ़ रहा है क्योंकि वाहन लगभग प्रत्येक परिवार में है और अगर वाहन है तो चालान कटना भी लाजमी है। यातायात अधिनियम के परिणाम भी इंदिरा गांधी सरकार की नसबंदी योजना की तरह ही हो सकते हैं और हमें लगता है कि इस सरकार इस संबंध में जानती भी है। मगर लगता है की सरकार के सामने भी कोई बड़ी मजबूरी है क्योंकि सरकार इस समय कोई भी ऐसा मौका नहीं छोड़ना चाहती है कि जिससे आम जनता की जेब से पैसा वसूला जा सके। मौजूदा समय में तो हालात मुस्लिम शासनकाल की टैक्स वसूली तरफ इशारा कर रहे हैं और जनता बेचारी क्या कर सकती है।