अभिमान बनाम राजनीति

विशेष संपादकीय


दिल्ली राज्य के 70 विधानसभा के परिणामों ने आज भाजपा नेताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है हालांकि आप नेता अरविंद केजरीवाल ने पहले दिन से ही अपना दावा ठोक दिया था और खुले मंच पर कहा कि आपकी सरकार दिल्ली में एक बार फिर आएगी। उन्होंने यह भी दावा किया कि पहले से अधिक सीट उनकी पार्टी जीतेगी। आज परिणाम आए मगर भाजपा के शीर्ष नेताओं की उम्मीद ही टूट गई, मगर दिल्ली में आप पार्टी एक बार फिर सरकार बनाने में सफल रही है।
दिल्ली राज्य में विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी रहे जबकि भाजपा शीर्ष नेताओं ने स्थानीय मुद्दों को दरकिनार किया और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को जनता के समक्ष रखा मगर जनता ने उनके सभी मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता ने साफ संदेश दिया है कि स्थानीय मुद्दे किसी भी राज्य के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। दिल्ली की आम जनता का मानना है कि आप पार्टी ने बीते 5 वर्ष में आम जनता से जुड़े मुद्दे एवं आवश्यकताओं को प्राथमिकता से पूर्ण किया है। जिसमें मुख्य रूप से शिक्षा,स्वास्थ्य,बिजली एवं पानी सभी मुफ्त उपलब्ध कराएं क्योंकि यह प्रत्येक परिवार की आवश्यकता है। खुशी है कि आप पार्टी ने प्रत्येक घर में अपना स्थान बना लिया और चुनाव परिणामों में यह साफ दिखाई पड़ता है।
वही भाजपा ने राष्ट्रीय मुद्दों को प्राथमिकता से जनता के समक्ष रखा था। जिसमें मुख्य रूप से कश्मीर से धारा 370 हटाना, तीन तलाक एवं राम मंदिर निर्माण कराना अपने प्रमुख कार्यों के रूप में जनता के समक्ष रखा मगर जब जनता द्वारा आवाज उठाई जाती कि दिल्ली सहित पूरे देश में बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है और लगातार देश की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है। भाजपा शीर्ष नेताओं ने जनता की आवाज को चुनाव के दौरान गंभीरता से नहीं लिया और इसके बावजूद भी भाजपा नेता बेरोजगारी एवं आर्थिक स्थिति के मुद्दे पर केवल राम मंदिर एवं धारा 370 को सामने रखकर अपना बचाव करने में सफल हो जाते थे, मगर जनता तो जनता है, वह भी अपना जवाब देना जानती है।
वही भाजपा नेताओं ने शाहीन बाग को मुद्दा बनाने का प्रयास किया मगर सफलता नहीं मिल पाई। जनता ने भाजपा के खिलाफ मतदान कर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि जनहित के मुद्दों पर चर्चा करनी होगी और अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय मुद्दों एवं आम जनता की आवश्यकताओं को भी गंभीरता से लेना होगा और अमल करना होगा नहीं तो दिल्ली विधानसभा जैसे परिणाम अन्य राज्यों में भी भाजपा को देखने पड़ सकते हैं।
इस समय देश में मौजूदा आर्थिक स्थिति के कारण उद्योग व्यापार मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। इसी कारण बेरोजगारों की संख्या में लगातार इजाफा भी हो रहा है। देश में बेरोजगारी का मुद्दा अब गंभीर होने लगा है क्योंकि 2014 एवं 2019 में सबसे अधिक वोट भाजपा के लिए युवाओं ने ही किया है। अब वही युवा अपनी उम्मीद टूटने के कारण अब भाजपा से छिटकता नजर आ रहा है।  इसके संकेत दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिले हैं।
इसी वर्ष पश्चिमी बंगाल एवं बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं अगर केंद्र सरकार एवं भाजपा में बेरोजगारी एवं आर्थिक स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया तो निश्चित ही इसके परिणाम दोनों विधानसभा में भाजपा को देखने को मिल सकते हैं।
यह समझ नहीं आता कि केंद्र एवं राज्य सरकारें बीते लगभग एक दशक से सरकारी विभागों में भर्तियां नहीं कर रहे हैं आखिर क्यों? सरकारी विभागीय आंकड़ों से यह तो साफ है प्रतिमाह प्रत्येक विभाग से सैकड़ों अधिकारी एवं कर्मचारी रिटायर्ड हो जाते हैं मगर उनके स्थान पर कोई नई भर्ती नहीं की जा रही है आखिर क्यों? ऐसी सरकार की क्या मजबूरी है। सरकारी विभागीय जानकारी के अनुसार कर्मचारी एवं अधिकारियों की प्रत्येक विभाग में भारी कमी है जिसके कारण विभागीय कार्यों को समय पर उम्र नहीं किया जा सकता है।