खतरों का सामना करने के लिए तैयार करें अपने को

गोपाल राय


आए दिन हम आपदाओं का सामना करते हैं चाहे वह प्राकृतिक हो या मानवीय। ये आपदाएं जनमानस पर बहुत ही बुरा प्रभाव डालती हैं। हमारे आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक व राजनीतिक ताने बाने को भी ध्वस्त कर देती हैं। देश में हर साल औसत 4350 मानव जीवन को हम खो देते हैं। 1.42 मिलियन हेक्टेअर फसल बर्बाद हो जाती है। 2.36 मिलियन मकान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। देश की कुल जीडीपी का दो प्रतिशत नष्ट हो जाता है। हर बड़ी आपदा जिस इलाके में आती है वहां विकास को 15 साल के लिए पीछे ले जाती है। कैसे आपदाओं का प्रभाव कम हो इस पर पूरी दुनिया में मंथन चल रहा है।  पहले पूरी दुनियां में आपदाओं के दौरान खोज व  बचाव पर जोर दिया जाता रहा है उसके बाद  पुनर्वास और पुर्निर्माण पर जोर दिया जाता रहा है। लेकिन एक दशक से पूरी दुनियां में इस दृष्टिकोण में बदलाव आया है। अब तैयारी, बचाव और न्यूनीकरण पर भी जोर दिया जाने लगा है।
आपदाओं की स्थिति को देखते हुए भारत सरकार की ओर से 1999 में हाई पावर कमेटी का गठन किया गया। कमेटी ने 2001 में अपनी रिपोर्ट दी। कमेटी की रिपोर्ट के बाद  आपदा प्रबंध अधिनियम 23 दिसंबर 2005 को संसद में पास किया गया और सुनामी की बरसी पर 26 दिसम्बर 2005 को देश मे लागू कर दिया गया। इस अधिनियम के तहत आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए केंद्र, राज्य और जिला स्तर से लेकर ग्राम स्तर तक आपदा प्रबंधन का ढांचा खड़ा करने की पहल की जा रही है। हालांकि जिस तरह का ढ़ांचा हमारे पास होना चाहिए उस तरह का ढ़ांचा हमारे पास नहीं है। सुरक्षा राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। राज्यों में राज्य आपदा प्रबंध प्राधिकरण और जिलों में जिला आपदा प्रबंध प्राधिकरण का गठन हुआ है। लेकिन इनकी व्यवस्था प्रभवी नहीं है। जिलों में तो भी अभी तक जिला आपदा प्रबंध अधिकारी की तैनाती तक नहीं की गई है। हालत यह है कि हादसा होने के बाद हम जागते हैं और फिर सो जाते हैं अगले हादसे तक के लिए। सबक लेकर जोखिम का सही आंकलन नहीं किया जा रहा है।
समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन की जरूरत
किसी भी व्यक्ति को बचाने के लिए सबसे पहले पहल उसका पड़ोसी करता है। अन्य एजेंसियां बाद में पहुंचती हैं। समुदाय स्तर पर हम आपदा प्रबंधन का ढ़ांचा खड़ा कर दें और हर आदमी को आपदा प्रबंधन के प्रति जागरूक कर दें तो स्थिति में बदलाव आ सकता है। समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन की कोशिश भी की जा रही है। लेकिन उसमें बहुत अधिक सफलता नहीं मिली है। इसकी वजह है कि ठीक से काम नहीं किया जा रहा है।
केंद्र की भूमिका
केंद्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंध प्राधिकरण (एनडीएमए), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआइडीएम) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ)  का गठन किया गया है।एनडीएमए का मुख्य काम नीति बनाना और देश को अापदाओं से बचाव के लिए तैयार करना है। जहां पर ठीक से काम किए गए हैं वहां पर बेहतर परिणाम सामने आए हैं। जहां पर ठीक से काम नहीं किया गया है वहां पर अच्छे परिणाम नहीं आए हैं। 1999 में उड़ीसा में आए चक्रवाती तूफान में बड़े पैमाने पर मानव जीवन की क्षति हुई थी। इससे सबक लेते हुए केंद्र और राज्य की ओर से बेहतर काम किया गया । जरूरत का आंकलन करते हुए शेल्टर होम बनाये गए। 2013 में आए सिवियर साइक्लोन में लोगों की जान बचाने में सफलता में मिली। इसमें किसी की जान नहीं गई। इससे लगता है कि आपदाओं के मद्देनजर जोखिम व संवेदनशीलता का सही आंकलन कर योजना बनाई जाए तो अच्छी सफलता मिलेगी और आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सकेगा। लेकिन उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में आपदा प्रबंधन पूरी तरह से फेल रहा। उत्तराखंड के हादसे के बाद सभी पहाड़ी इलाकों का सही आंकलन कर योजनाएं बनाई जाती तो जम्मू में इतनी तबाही नहीं होती। एनआइडीएम एनडीएमए के लिए मस्तिष्क का काम कर रहा है। वह राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों को ट्रेनिंग देने और ट्रेनिंग माडल विकसित करने का काम कर रहा है। एनडीआरएफ आपदाओं के दौरान लोगों को बचाने में अहम भूमिका निभा रहा है।
 क्रेंद की तर्ज पर राज्यों में एसडीएमए , एसडीएमआई और एसडीअारएफ का गठन किया जाना है। एसडीएमए का गठन कर दिया गया है। एसडीआरएफ का गठन अधिकतर राज्यों में अभी तक नहीं किया गया है। गठन की कोशिश की जा रही है। जिला स्तर पर जिला आपदा प्रबंध प्राधिकरण (डीडीएमए) का गठन अधिकतर राज्यों में केवल कागजों पर है। राहत विभाग ही आपदा आने पर बचाव और पुनर्वास का काम देख रहा है। जिला आपदा प्रबंध अधिकारी की अब तक तैनाती जिलों में नहीं की गई है।  
कैसे करें तैयारी
आपदाओं से बचाव के लिए जरूरी है कि खतरों का सही आंकलन किया जाए। खतरों का सही आंकलन किए बगैर बेहतर बचाव की व्यवस्था नहीं की जा सकती है। सरकारी मशीनरी की ओर से राज्य स्तर पर, जिला स्तर पर, ग्राम स्तर पर योजनाएं बनाई जाती हैं। उनको प्रभावी बनाने की जरूरत है। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने घर के अंदर भी खतरे का सहीं आकंलन करे और उसे दूर करे। इसके अलावा परिवार आपदा प्रबंध प्लान बनायें। आपदा के समय परिवार आपदा प्रबंधन प्लान आपको काफी मददगार साबित होगा। आप एक परिवार आपदा किट भी हमेशा तैयार रखें। परिवार आपदा किट में एक पांच लीटर पानी भरा जार, तीन दिन से लेकर एक सप्ताह तक के लिए सूखा भोजन ( ड्रार्ड फ्रूट, नमकीन बिस्किट, सत्तू, लाई चना रख सकते हैं) टार्च, रेडियो, प्राथमिक चिकित्सा बाक्स और कुछ रुपये । यह किट हमेशा तैयार रहनी चाहिए।आए दिन हम आपदाओं का सामना करते हैं चाहे वह प्राकृतिक हो या मानवीय। ये आपदाएं जनमानस पर बहुत ही बुरा प्रभाव डालती हैं। हमारे आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक व राजनीतिक ताने बाने को भी ध्वस्त कर देती हैं। देश में हर साल औसत 4350 मानव जीवन को हम खो देते हैं। 1.42 मिलियन हेक्टेअर फसल बर्बाद हो जाती है। 2.36 मिलियन मकान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। देश की कुल जीडीपी का दो प्रतिशत नष्ट हो जाता है। हर बड़ी आपदा जिस इलाके में आती है वहां विकास को 15 साल के लिए पीछे ले जाती है। कैसे आपदाओं का प्रभाव कम हो इस पर पूरी दुनिया में मंथन चल रहा है।  पहले पूरी दुनियां में आपदाओं के दौरान खोज व  बचाव पर जोर दिया जाता रहा है उसके बाद  पुनर्वास और पुर्निर्माण पर जोर दिया जाता रहा है। लेकिन एक दशक से पूरी दुनियां में इस दृष्टिकोण में बदलाव आया है। अब तैयारी, बचाव और न्यूनीकरण पर भी जोर दिया जाने लगा है।
आपदाओं की स्थिति को देखते हुए भारत सरकार की ओर से 1999 में हाई पावर कमेटी का गठन किया गया। कमेटी ने 2001 में अपनी रिपोर्ट दी। कमेटी की रिपोर्ट के बाद  आपदा प्रबंध अधिनियम 23 दिसंबर 2005 को संसद में पास किया गया और सुनामी की बरसी पर 26 दिसम्बर 2005 को देश मे लागू कर दिया गया। इस अधिनियम के तहत आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए केंद्र, राज्य और जिला स्तर से लेकर ग्राम स्तर तक आपदा प्रबंधन का ढांचा खड़ा करने की पहल की जा रही है। हालांकि जिस तरह का ढ़ांचा हमारे पास होना चाहिए उस तरह का ढ़ांचा हमारे पास नहीं है। सुरक्षा राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। राज्यों में राज्य आपदा प्रबंध प्राधिकरण और जिलों में जिला आपदा प्रबंध प्राधिकरण का गठन हुआ है। लेकिन इनकी व्यवस्था प्रभवी नहीं है। जिलों में तो भी अभी तक जिला आपदा प्रबंध अधिकारी की तैनाती तक नहीं की गई है। हालत यह है कि हादसा होने के बाद हम जागते हैं और फिर सो जाते हैं अगले हादसे तक के लिए। सबक लेकर जोखिम का सही आंकलन नहीं किया जा रहा है।
समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन की जरूरत
किसी भी व्यक्ति को बचाने के लिए सबसे पहले पहल उसका पड़ोसी करता है। अन्य एजेंसियां बाद में पहुंचती हैं। समुदाय स्तर पर हम आपदा प्रबंधन का ढ़ांचा खड़ा कर दें और हर आदमी को आपदा प्रबंधन के प्रति जागरूक कर दें तो स्थिति में बदलाव आ सकता है। समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन की कोशिश भी की जा रही है। लेकिन उसमें बहुत अधिक सफलता नहीं मिली है। इसकी वजह है कि ठीक से काम नहीं किया जा रहा है।
केंद्र की भूमिका
केंद्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंध प्राधिकरण (एनडीएमए), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआइडीएम) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ)  का गठन किया गया है।एनडीएमए का मुख्य काम नीति बनाना और देश को अापदाओं से बचाव के लिए तैयार करना है। जहां पर ठीक से काम किए गए हैं वहां पर बेहतर परिणाम सामने आए हैं। जहां पर ठीक से काम नहीं किया गया है वहां पर अच्छे परिणाम नहीं आए हैं। 1999 में उड़ीसा में आए चक्रवाती तूफान में बड़े पैमाने पर मानव जीवन की क्षति हुई थी। इससे सबक लेते हुए केंद्र और राज्य की ओर से बेहतर काम किया गया । जरूरत का आंकलन करते हुए शेल्टर होम बनाये गए। 2013 में आए सिवियर साइक्लोन में लोगों की जान बचाने में सफलता में मिली। इसमें किसी की जान नहीं गई। इससे लगता है कि आपदाओं के मद्देनजर जोखिम व संवेदनशीलता का सही आंकलन कर योजना बनाई जाए तो अच्छी सफलता मिलेगी और आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सकेगा। लेकिन उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में आपदा प्रबंधन पूरी तरह से फेल रहा। उत्तराखंड के हादसे के बाद सभी पहाड़ी इलाकों का सही आंकलन कर योजनाएं बनाई जाती तो जम्मू में इतनी तबाही नहीं होती। एनआइडीएम एनडीएमए के लिए मस्तिष्क का काम कर रहा है। वह राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों को ट्रेनिंग देने और ट्रेनिंग माडल विकसित करने का काम कर रहा है। एनडीआरएफ आपदाओं के दौरान लोगों को बचाने में अहम भूमिका निभा रहा है।
 क्रेंद की तर्ज पर राज्यों में एसडीएमए , एसडीएमआई और एसडीअारएफ का गठन किया जाना है। एसडीएमए का गठन कर दिया गया है। एसडीआरएफ का गठन अधिकतर राज्यों में अभी तक नहीं किया गया है। गठन की कोशिश की जा रही है। जिला स्तर पर जिला आपदा प्रबंध प्राधिकरण (डीडीएमए) का गठन अधिकतर राज्यों में केवल कागजों पर है। राहत विभाग ही आपदा आने पर बचाव और पुनर्वास का काम देख रहा है। जिला आपदा प्रबंध अधिकारी की अब तक तैनाती जिलों में नहीं की गई है।  
कैसे करें तैयारी
आपदाओं से बचाव के लिए जरूरी है कि खतरों का सही आंकलन किया जाए। खतरों का सही आंकलन किए बगैर बेहतर बचाव की व्यवस्था नहीं की जा सकती है। सरकारी मशीनरी की ओर से राज्य स्तर पर, जिला स्तर पर, ग्राम स्तर पर योजनाएं बनाई जाती हैं। उनको प्रभावी बनाने की जरूरत है। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने घर के अंदर भी खतरे का सहीं आकंलन करे और उसे दूर करे। इसके अलावा परिवार आपदा प्रबंध प्लान बनायें। आपदा के समय परिवार आपदा प्रबंधन प्लान आपको काफी मददगार साबित होगा। आप एक परिवार आपदा किट भी हमेशा तैयार रखें। परिवार आपदा किट में एक पांच लीटर पानी भरा जार, तीन दिन से लेकर एक सप्ताह तक के लिए सूखा भोजन ( ड्रार्ड फ्रूट, नमकीन बिस्किट, सत्तू, लाई चना रख सकते हैं) टार्च, रेडियो, प्राथमिक चिकित्सा बाक्स और कुछ रुपये । यह किट हमेशा तैयार रहनी चाहिए।