एनसीआर में भी हो सकता है विशाखा पट्टनम जैसा हादसा गोपाल राय आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ
आंध्र प्रदेश के विशाखा पट्टनम में एलजी पॉलिमर्स इंडस्ट्री से जहरीली गैस के रिसाव से जिस तरह का हादसा हुआ है उसने दिसम्बर 1984 में हुए भोपाल गैस कांड की यादें ताजा कर दी हैं। इसकी चर्चा यहां हम इसलिए कर रहे हैं कि आप जानने और पहचानने की कोशिश करें कि आपके आसपास अर्थात एनसीआर में इस तरह का खतरा मौजूद है या नही, है तो उसके बाहर आने पर आप पर क्या असर होगा? क्या आपके बचाव के लिए इंडस्ट्री, सरकार और जिला प्रशासन की ओर से कारगर व्यवस्था की गई है? सरकार और प्रशासन की व्यवस्था कितनी भी अच्छी हो आप तक मदद पहुंचने में कुछ समय लगेगा। मदद पहुंचने से पहले आप खतरे से कैसे बचेंगे इसके लिए आपके पास परिवार के स्तर पर और समुदाय के स्तर पर रणनीति होनी चाहिए। विशाखा पट्टनम में हादसा टॉक्सिक हजार्ड स्टाइरिन गैस से हुआ है। टॉक्सिक हजार्ड में बहुत सी गैसें अति हैं जिनमे हमारे आसपास क्लोरीन और अमोनिया बहुत अधिक मात्रा में है। गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलन्दशहर में ही 25 अतिखतरनाक कारखाने हैं। इनमें फायर हजार्ड के साथ साथ टॉक्सिक हजार्ड भी हैं। इसके अलावा 400 से अधिक खतरनाक कारखाने हैं उनमें भी टॉक्सिक और फायर हजार्ड हैं। अति खतरनाक कारखानों में खतरे से बचने के लिए फैक्ट्री का ऑन साइट प्लान होता है। इस प्लान पर हर 6 महीने पर मॉक ड्रिल होना चाहिए। खतरा कारखाने से बाहर आता है तो बचाव के लिए जिले का ऑफ साइट प्लान होना चाहिए। इस पर साल में एक बार मॉक ड्रिल होना चाहिए। होता है या नही आप लोग पता कर सकते हैं। मेरी समझ से प्रभावी व्यवस्था नही है। खतरनाक कैटेगरी के प्लाण्टों में सेफ्टी मेजर को चेक करना और उसका पालन कराना जरूरी होता है ताकि सुरक्षा में कहीं कोई खामी हो तो ठीक हो जाये। मिल्क प्लांट,मीट प्लांट, कोल्ड स्टोरेज, आइसक्रीम प्लांट, जितने भी चिलिंग प्लांट हैं उनमें अमोनिया का प्रयोग होता है। अमोनिया के प्लाण्टों से बाहर आने से गाज़ियाबाद, मेरठ, बुलन्दशहर आदि में हादसे हो चुके हैं। इनमें जोखिम को कम करने के लिए 25 पीपीएम पर सेंसर लगा होना चाहिए। शायद किसी मे सेंसर लगा हो। इसके साथ ही स्क्रबर सिस्टम लगा हो तो सुरक्षा काफी बढ़ जाती है। किसी मे स्क्रबर सिस्टम नही लगा है। नोएडा में ही हल्दीराम के प्लांट से अमोनिया रिसने की घटना पहले हो चुकी है। अति खतरनाक किस्म के प्लाण्टों में क्लोरीन का स्टॉक काफी रहता है। नोएडा को गंगाजल की आपूर्ति करने वाले दोनो प्लाण्टों को मिलाकर 36 एम टी से अधिक क्लोरीन का स्टॉक रहता है। पानी को शुद्ध करने के लिए क्लोरीनेशन किया जाता है। यदि किसी कारण बस क्लोरीन प्लांट से बाहर आता है तो बड़े क्षेत्र को प्रभावित करेगा। प्लांट के एक तरफ अति व्यस्त एन एच 24 है तो दूसरी तरफ दिल्ली हाबड़ा रुट। आसपास में इंडस्ट्रियल और रेजिडेंशियल आबादी भी बहुत है। सभी अपने से पूछें कि इस खतरे से बचने के लिए उनके पास क्या रणनीति है। बुलन्दशहर और गौतमबुद्ध नगर के अन्य अति खतरनाक प्लाण्टों में क्लोरीन का स्टॉक है। उनमें किसी मे सेंसर नही लगा है। 1 पीपीएम पर सेंसर लगा होना चाहिए। यह अमोनिया के मुकाबले 25 गुना घातक होती है 4 से 5 मिनट में जान ले सकती है।ऐसे खतरों से हमारा कभी भी सामना हो सकता है। इंडस्ट्री विभाग की ओर से दावा किया जाता है कि न साइट ऑफ साइट प्लान मजबूत है। सेफ्टी मेजर का पालन कराया जाता है। प्लान कितना मजबूत है आप खुद आंकलन करें। आम आदमी के पास ऐसे में केवल एक रास्ता रह जाता है कि खतरे से सामना होने पर वह कैसे बचें। कुछ तरीके जो आपके लिए मददगार हो सकते हैं:
* पानी से चेहरे और आंख मुंह को ठीक से धोएं। आंख में पानी के छपके मारें।
* गीला कपड़ा मुंह और नाक पर रखें, इससे अमोनिया का असर कम होगा।
* गले में गैस का असर महसूस हो रहा हो तो पानी पीएं, इससे उसका असर गले पर कम होगा
* आपके पास मास्क हो तो उसे पहनें, इससे उसका प्रभाव कम होगा।
* हवा की दिशा की पहचान करें और जिस दिशा में हवा जा रही है उस दिशा में न भागें । जहां तक गैस फैली है उस रेंज से बाहर निकलने की कोशिश करें।
* घर के अंदर हैं और आसपास में गैस रिसने की जानकारी मिलती है तो घर के अंदर रहें। खिड़की दरवाजे को बंद कर दें।
* पानी की बौछार करने पर गैस का असर कम हो जाता है। उसके प्रभाव को कम करने के लिए पानी की बौछार कर सकते हैं।
* टॉक्सिक गैसों का प्रयोग करने वाले प्लांटों में सेंसर लगाएं।इससे लीक होने पर सायरन बज जाएगा।
* प्लाटों में पाइप के प्रेशर की टेस्टिंग हर छह महीने पर करायें। प्रेशर अधिक होने के कारण हादसे होते हैं।
* प्लांट में स्क्रबर लगाएं।
* प्लांट पर विंड फ्लैग लगाएं। इससे हवा का रूख पहचानने में मदद मिलेगी। ग्राम पंचायतों, शहरों में भी फ्लैग हों ताकि हवा की दिशा लोग आसानी से पहचान सकें।