जल प्रबंधन और ग्राम पंचायतें
विश्व व्यापी कोविड 19 के खतरे के जोखिम के बीच लॉक डॉउन के कारण नकारात्मक प्रभावों के साथ साथ कुछ सकारात्मक प्रभाव भी हुआ हैं। मसलन नदियों का जल साफ हो गया, हवा शुद्ध हो गयी, तापमान में भी कमी आयी। इस सकारात्मक बदलावों के बीच ग्राम पंचायतों में जल संरक्षण को नया आयाम देकर जल संकट के खतरे को भी काफी सीमा तक कम कर सकते हैं। जल संकट कभी खतरा वैश्विक रूप लेने की ओर बढ़ रहा है। इस खतरे के जोखिम को कम केवल सरकारी प्रयास से ही नही व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक भागीदारी से किया सकता है। सरकार और सरकारी प्रयास बेशक कारगर और प्रासंगिक, सामयिक हों लेकिन सफलता की कुंजी जनता की बड़े पैमाने पर सहभागिता ही हो सकती है। जल संरक्षण और जल सम्भरण के लिए अच्छा मौका है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इस सीजन में अच्छी बारिश के संकेत दिए हैं। इस मौके का हमे और हमारी ग्राम पंचायतों को भरपूर फायदा उठाना होगा। गांवों का पानी गांवों में और खेत का पानी खेत में रोकना होगा। तालाबों, पोखरों और अन्य जल स्रोतों में जल का सम्भरण करना होगा। भारत सरकार और प्रदेश सरकारें भी इस जल संकट के संभावित खतरे से वाकिफ हैं। इसके जोखिम को कम करने के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है। देश मे इसके लिए जल शक्ति मंत्रालय पहले से ही देश मे काम कर रहा है। मंत्रालय की कोशिश देश को जन शक्ति से जल शक्ति बनाने की है। केंद्र और प्रदेश सरकार की तरह ग्राम पंचायतों की अपनी सरकार है। 73 वें संविधान संशोधन के माध्यम से ग्राम पंचायतों को बड़े व्यापक अधिकार दिए गए हैं। अधिकार देने पीछे ग्राम पंचायतों को जनता की सहभागिता बढ़ाकर आत्म निर्भर बनाना है । केंद्र और प्रदेश सरकार के दिशानिर्देश और अपने अधिकारों व कर्तव्यों का पालन करते हुए ग्राम पंचायतें जल संरक्षण को नया आयाम दे सकती हैं। इसके लिए उनको कुछ तथ्यों का ध्यान रखना होगा जो इस प्रकार हो सकते हैं: *हर ग्राम पंचायत अपनी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए इसके लिए प्लान बनाये
* मानसून पर नजर रखें, कोशिश करें कि अधिक से अधिक जल संचय हो
* मानसून के दौरान कितना भूजल रिचार्ज हुआ आंकलन करें
* मानसून के दौरान भी भूजल उपर नहीं आता है तो जल संकट से बचने के लिए तैयारी करें
* नलकूप व हैंडपंप एक मीटर से लेकर दो मीटर तक रिबोर कराने पड़ सकते हैं
* जलसंरक्षण के लिए वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा दें, 200 वर्ग मीटर के मकान पर वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था अनिवार्य है। पहले 300 वर्ग मीटर के मकानों पर यह प्रावधान लागू था लेकिन गिरते भूजल स्तर को देखते हुए 2009 से इसे 200 वर्ग मीटर के मकानों पर अनिवार्य कर दिया गया है।
* वर्षा जल का छह प्रतिशत भाग ही जमीन के अंदर जा पाता है बाकी सब बहकर नदियों से होते हुए समुद्र में चला जाता है।
* जल स्तर बढ़ाने के लिए घर के कुछ भाग को कच्चा जरूर रखें
* खेती में मानसून पर भी नजर रखें
* अधिक जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए उचित फसल का चयन करें
* कम वर्षा वाले क्षेत्र के लिए कम पानी में होने वाली फसलों का चयन करें
* जल संरक्षण तकनीक के लिए फरो इरीगेटेड रेज्ड बेड प्लाटिंग (एफआईआरबी) सिस्टम, बीज की प्राइमिंग और लेजर लैंड लैवलिंग अपनायें।
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